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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जिस धूप की दिल में ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बलती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिए
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
वाँ गया भी मैं तो उन की गालियों का क्या जवाब
याद थीं जितनी दुआएँ सर्फ़-ए-दरबाँ हो गईं