aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "gand marana"
शब-ज़ाद-गाँ! तुम अहल-ए-ख़बर से नहीं सो तुम!अपना मदार अपना मदीना जुदा करो
बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना हैये तजरबा भी इसी ज़िंदगी में करना है
शब-ज़ाद-गाँ तुम अहल-ए-नज़र से नहीं सो तुमअपना मदार अपना मदीना जुदा करो
वो क्या कुछ न करने वाले थेबस कोई दम में मरने वाले थे
किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्याहुए ख़ाक जब तो बिखरना भी क्या
मेरा गाँव है छोटा माना परचैन तू खींचता तो रुकती रेल
मुझ को सरशार किए रखती है इक मानस-गंधमेरा मा'शूक़ परी-ज़ाद नहीं हो सकता
आईना कभी क़ाबिल-ए-दीदार न होवेगर ख़ाक के साथ उस को सरोकार न होवे
दिल को बचा के लाए थे सारे जहाँ से हमआख़िर में चोट खा गए इक मेहरबाँ से हम
गाँव रफ़्ता रफ़्ता बनते जाते हैं अब शहरक़र्या क़र्या फैल रहा है तन्हाई का ज़हर
कहाँ कहाँ से गुज़र रहा हूँमैं आँधियों में बिखर रहा हूँ
जिन्नों आज़माना पड़ा ज़िंदगी मेंसभी कुछ निभाना पड़ा ज़िंदगी में
मरना तक़दीर है ज़ंजीर बजा लो पहलेकुछ हो सय्याद से आँखें तो मिला लो पहले
सुब्ह-ए-नौ का ख़याल करते हैंशब-गज़ीदा कमाल करते हैं
मजबूर हो गया तो फ़ज़ा में बिखर गयामाहौल ऐसा पाया कि बे-मौत मर गया
आलाम-ए-रोज़गार का मुँह ज़र्द हो गयाहर ज़ख़्म का इलाज तिरा दर्द हो गया
शफ़क़ फूलते ही तिरी याद आईघने जंगलों में हवा सनसनाई
मरना ही हक़ीक़त है तो फिर ज़िंदगी क्या हैये धूप की शिद्दत ये घने साए कहानी
दिल को पैहम दर्द से दो-चार रहने दीजिएकुछ तो क़ाएम इश्क़ का मेआ'र रहने दीजिए
सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल थामाँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
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