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ग़ज़ल
भिक्षु-दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर
गुलशन ख़ुशबू, कोयल कूकू, मस्ती दारू, मैं और तू
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
ये गधा जो अपनी ग़फ़्लत से है बेवक़ूफ़ इतना
जो ये ख़ुद को जान जाता बड़ा होशियार होता
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
हैं यूँ तो फ़िदा अब्र-ए-सियह पर सभी मय-कश
पर आज की घनघोर घटा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
उस के आँगन में खुलता था शहर-ए-मुराद का दरवाज़ा
कुएँ के पास से ख़ाली गागर हाथ में ले कर पल्टी मैं