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ग़ज़ल
हंगाम-ए-सुख़न-संजी आतिश की ज़बानी को
शर्मिंदा किया ऐ दिल उस शोख़ के गप-शप ने
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
अक़ील संभली
ग़ज़ल
आँसुओं के साथ आख़िर बह गई शाम-ए-अलम
जाने क्या क्या ख़्वाब बुनती रह गई शाम-ए-अलम
मुनव्वर ताबिश सम्भली
ग़ज़ल
मुझे जब शान-ए-ज़ब्त-ए-ग़म दिखाने का ख़याल आया
वुफ़ूर-ए-दर्द में भी मुस्कुराने का ख़याल आया