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ग़ज़ल
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
न ख़िरद की बख़िया-गरी रही न जुनूँ की पर्दा-दरी रही
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न ब'अद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जिन्हें ख़बर थी कि शर्त-ए-नवागरी क्या है
वो ख़ुश-नवा गिला-ए-क़ैद-ओ-बंद क्या करते