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ग़ज़ल
रेआ'या को मुनासिब है कि बाहम दोस्ती रक्खें
हिमाक़त हाकिमों से है तवक़्क़ो गर्म-जोशी की
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
'अक्स से अपने किसी के गर्म-जोशी क़हर थी
रह गया आख़िर पसीने में नहा कर आईना