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ग़ज़ल
जल उठे ज़ेहन के ऐवान में लफ़्ज़ों के चराग़
आज फिर गर्मी-ए-अंदाज़-ए-बयाँ रक़्स में है
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
जब मुफ़क्किर मिरे अंदाज़-ए-बयाँ तक पहुँचे
मेरी हालत मिरे हर राज़-ए-निहाँ तक पहुँचे
महवर सिरसिवी
ग़ज़ल
मिरा हुस्न-ए-तकल्लुम मेरे अंदाज़-ए-बयाँ तक है
तुम्हारी दास्ताँ का रंग मेरी दास्ताँ तक है
सुल्तान शाकिर हाश्मी
ग़ज़ल
न आना था न आख़िर मुझ को अंदाज़-ए-बयाँ आया
करम तो देखिए उस दर से फिर भी शादमाँ आया
सय्यद शफ़क़ शाह चिश्ती
ग़ज़ल
अब हसीं चेहरों पे मिलती है तसन्नो की नक़ाब
ग़म्ज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अंदाज़-ओ-अदा कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-बुलबुल-ए-किल्क-ए-'बयाँ' किस तरह खुलते मुँह
कि बू-ए-ग़ुंचा साँ महजूब नुत्क़-ए-हर-सुख़न वाँ था
बयान मेरठी
ग़ज़ल
मुद्दई दर-पर्दा कट कट जाते हैं शक्ल-ए-नियाम
ऐ 'बयाँ' मेरी ज़बान-ए-तेज़ कहलाती है तेग़