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ग़ज़ल
किस ने वस्ल का सूरज देखा किस पर हिज्र की रात ढली
गेसुओं वाले कौन थे क्या थे उन को क्या जतलाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कहाँ मेरे दिल की हसरत, कहाँ मेरी ना-रसाई
कहाँ तेरे गेसुओं का, तिरे दोश पर बिखरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
तिरी दीद से सिवा है तिरे शौक़ में बहाराँ
वो चमन जहाँ गिरी है तिरे गेसुओं की शबनम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
मिरे बाज़ुओं में आ कर तिरा दर्द चैन पाए
तिरे गेसुओं मैं छुप कर मैं जहाँ के ग़म भुला दूँ
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
तुझे अब भी मेरे ख़ुलूस का न यक़ीन आए तो क्या करूँ
तिरे गेसुओं को सँवार कर तुझे आइना भी दिखा दिया
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
छेड़ कर 'साग़र' किसी के गेसुओं की दास्ताँ
इन शगूफ़ों को ज़रा शो'ला-ज़बाँ करते चलो
साग़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
उन के जल्वों की सहर तो 'तर्ज़' दुनिया ले गई
गेसुओं की शाम अपने नाम हो कर रह गई