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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
पीले पत्तों को सह-पहर की वहशत पुर्सा देती थी
आँगन में इक औंधे घड़े पर बस इक कव्वा ज़िंदा था
जौन एलिया
ग़ज़ल
ये उस के प्यार की बातें फ़क़त क़िस्से पुराने हैं
भला कच्चे घड़े पर कौन दरिया पार करता है
हसन रिज़वी
ग़ज़ल
वफ़ा के नाम पर पैरा किए कच्चे घड़े ले कर
डुबोया ज़िंदगी को दास्ताँ-दर-दास्ताँ हम ने