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ग़ज़ल
बाग़ में लगता नहीं सहरा से घबराता है दिल
अब कहाँ ले जा के बैठें ऐसे दीवाने को हम
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं
जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
किसी कहानी में वीरानी में जब दिल घबराता था
किसी अज़ीज़ दुआ की ख़ुशबू साथ हमारे चलती थी
हम्माद नियाज़ी
ग़ज़ल
'पाशी' दिल को चैन न आए घेरें उन की याद के साए
रात आए तो घबराता हूँ रात मुझे पागल करती है
कुमार पाशी
ग़ज़ल
लेते लेते करवटें तुझ बिन जो घबराता हूँ मैं
नाम ले ले कर तिरा रातों को चिल्लाता हूँ मैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
जब से इक ख़्वाब की ता'बीर मिली है मुझ को
मैं हर इक ख़्वाब की ता'बीर से घबराता हूँ
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ग़ज़ल
गलियों में आज़ार बहुत हैं घर में जी घबराता है
हंगामे से सन्नाटे तक अपना हाल तमाशा है
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
कुछ तो पहले से दिल-ए-बेताब था वहशी-मिज़ाज
बे-तिरे दिन रात घबराता है तन्हा और भी