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ग़ज़ल
मुझ पर वफ़ा की शाम का बुझता सा रंग है
मैं तुझ से तंग हूँ तो ये दिल मुझ से तंग है
सय्यद अदील गिलानी
ग़ज़ल
गली का आम सा चेहरा भी प्यारा होने लगता है
मोहब्बत में तो ज़र्रा भी सितारा होने लगता है
अहमद अताउल्लाह
ग़ज़ल
क्या फ़रोग़-ए-बज़्म उस मह-रू का शब सद-रंग था
शम्अ' नहिं शर्मिंदा और मह देख रुख़ को दंग था