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ग़ज़ल
हैं यूँ तो फ़िदा अब्र-ए-सियह पर सभी मय-कश
पर आज की घनघोर घटा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
आज यक़ीनन मेंह बरसेगा आज गिरेगी बर्क़ ज़रूर
अँखियाँ भी पुर-शोर बहुत हैं कजरा भी घनघोर बहुत
उमर अंसारी
ग़ज़ल
घनघोर घटा के आँचल को जब काली रात निचोड़ गई
इक तन्हाई को चैन मिला इक तन्हाई दम तोड़ गई
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
इक दिन जब बूढे पेंटर के पास शराब के पैसे नहीं थे
छत पर ये घनघोर घटा तब से इस पब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
बन के घनघोर घटा मुझ पे तू छा खुल के बरस
ख़ुश्क सहरा को मिरे जिस्म के जल-थल कर दे