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ग़ज़ल
तुझे घाटा न होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में
हम अपने सर तिरा ऐ दोस्त हर एहसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
आँसू थे सो ख़ुश्क हुए जी है कि उमडा आता है
दिल पे घटा सी छाई है खुलती है न बरसती है