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ग़ज़ल
ग़ज़ल बस इस लिए फैला रही है अपने दामन को
कि हम ग़ज़लों के तेवर को बहुत ही ख़ूब रखते हैं
फ़ैयाज़ रश्क़
ग़ज़ल
'राग़िब' ब-एहतियात ही लाज़िम है गुफ़्तुगू
दुश्मन को भी गज़ंद न पहुँचे ज़बान से