aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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जज़्बा-ए-दिल ने मिरे तासीर दिखलाई तो हैघुंघरूओं की जानिब-ए-दर कुछ सदा आई तो है
ताक़-ए-दिल पे थी घुंघरूओं की सदाइक झड़ी सी लगी रही कल रात
घुंघरूओं के सुर जगेंगे छत की हर मुंडेर सेसीढ़ियाँ चढ़ ले वो गर पहने हुए पायल कभी
घुंघरूओं की झनक-मनक में बसीतेरी आहट! मैं किस ख़याल में था
ज़बाँ वो कैसे भला घुंघरुओं की समझेगाकि जिस के सामने चूड़ी की इल्तिजा टूटे
बे-कार ढूँढते हो समाअ'त में ख़ामियाँपहली सी घुंघरूओं में वो झंकार भी नहीं
कहीं से चीख़ भी उट्ठी तो रह गई दब करकि घुंघरुओं की छमा-छम है क्या किया जाए
जब तवाइफ़ शाह की रानी हुईघुंघरुओं की नज़र सुल्तानी हुई
कुछ फूट पड़ी है घुंघरुओं मेंछागल कुछ उन की कह रही है
फ़न हवस-कारों में आ कर लुट गयाघुंघरुओं से नग़्मगी उलझी रही
रक़्साँ है नसीम बर्ग-ए-गुल परशबनम में है घुंघरूओं की छन-छन
झूट को सच भले कितना ही बनाओ लेकिनघुंघरुओं की कभी झंकार कहाँ रुकती है
शरह-ए-ग़म तो क्या क्या होगी रक़्स देखने वालेघुंघरुओं से पायल के आश्ना नहीं है तू
घुंघरूओं से ही बुझानी है जिन्हें पेट की आगतोड़ कर उन को तो हर हद्द-ए-अदब नाचना है
मिरे अतराफ़ कोई रक़्स में रहता है 'ज़हूर'घुंघरुओं की मिरे कानों में खनक रहती है
मेरी ज़बाँ से क़ुव्वत-ए-गोयाई छीन करगूँगों की दास्तान में रक्खा गया मुझे
लिए बैठा हूँ घुंघरू फूल मोतीतिरा हँसना बनाना चाहता हूँ
तय करना हैं झगड़े जीने के जिस तरह बने कहते सुनतेबहरों से भी पाला पड़ता है गूँगों से भी बातें होती हैं
ब़ाँबी नागिन, छाया आँगन, घुंघरू छन-छन, आशा मनआँखें काजल, पर्बत बादल, वो ज़ुल्फ़ें और ये बाज़ू
वो गाए तो आफ़त लाए है हर ताल में लेवे जान निकालनाच उस का उठाए सौ फ़ित्ने घुँगरू की झनक फिर वैसी ही
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