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ग़ज़ल
दुश्मन ही जानती थी मिरी ज़िंदगी मुझे
धोका क़दम क़दम पे जो देती गई मुझे
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
मिरी वफ़ा के फ़लक पर गए हैं अफ़्साने
ज़मीन वाले हक़ीक़त न मेरी पहचाने
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
तग़ाफ़ुल तर्क कर डालो तकल्लुफ़ अब न फ़रमाओ
लब-ए-जाँ है मरीज़-ए-तालिब-ए-जल्वा चले आओ
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
आँखों में अश्क होंटों पे जाँ देखते रहे
कितने मज़े का सोज़-ए-निहाँ देखते रहे
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
आलम-ए-हू तिरे वहशी ने जब आबाद किया
अर्श को फूँक दिया फ़र्श को बर्बाद किया
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
ईमान की दौलत लुटती है क़ुर्बान जवानी होती है
जब 'इश्क़-ओ-मोहब्बत में बाहम पैग़ाम-रसानी होती है
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
हरम में कोई जल्वा तुम न बुत-ख़ाने में रख देना
ये सरमाया है दिल का दिल के काशाने में रख देना
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
मिर्ज़ा ग़ुलाम अब्बास ज़ाहिर हैदरी
ग़ज़ल
ज़रा मज़ा नहीं आया कलाम कर के मुझे
किसी ने रोक लिया था सलाम कर के मुझे
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
है तुम को दा'वा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा तो दर्द होगा ही
'अबस ही दर्द का सौदा किया तो दर्द होगा ही
मोहम्मद ग़ुलाम नूरानी
ग़ज़ल
आशिक़ तो मिलेंगे तुझे इंसाँ न मिलेगा
मुझ सा तो कोई बंदा-ए-फ़रमाँ न मिलेगा