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ग़ज़ल
अब शिद्दत-ए-ग़म से मिरा दम घुटने लगा है
तुम रेशमी ज़ुल्फ़ों की हवा क्यूँ नहीं देते
मुर्तज़ा बरलास
ग़ज़ल
जज़्बों का दम घुटने लगा है लफ़्ज़ों के अम्बार तले
पहले निशाँ-ज़द कर लेना था जितनी बात ज़रूरी थी
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
रिवाजों की वो कसरत है कि दम घुटने लगा अपना
उठा कर अब 'रज़ा' पारीना क़िस्सा रख दिया जाए
रज़ा मौरान्वी
ग़ज़ल
जिगर में दर्द दिल में टीस दम घुटने लगा अपना
भला हम एक घर में और दो बीमार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
हिज्र में दम घुटने को है कूच है तफ़रीह का
साँस रुकने को है हिचकी चंद बार आने को है