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ग़ज़ल
उन का ये कहना सूरज ही धरती के फेरे करता है
सर-आँखों पर सूरज ही को घूमने दो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
जंगल जंगल घूमने वाला अपने ध्यान की दस्तक से
कोसों दूर इक घर में किसी को सारी रात जगाता है
साबिर वसीम
ग़ज़ल
ख़लाओं में चला जाता हूँ अक्सर घूमने को मैं
ज़मीं पर फैली नफ़रत है ज़रूरत से ज़ियादा ही
आदित्य श्रीवास्तव शफ़क़
ग़ज़ल
बस्ती से गुज़रें तो सारे पनघट की अल्हड़ अबलाएँ
इन की प्यास बुझाने को ख़ुद उमड-घुमड बादल बन जाएँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
अब हिफ़ाज़त जितनी है महबूस हो जाने में है
ख़ुद के बाहर घूमने फिरने का अब मौक़ा नहीं