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ग़ज़ल
पत्थर को माना देवता लेकिन वो पत्थर ही रहा
हम गिड़गिड़ाते ही रहे उस पर असर कोई न था
विपिन सुनेजा शायक़
ग़ज़ल
जब गुदगुदाते हैं तुझे हम और ढब से तब
सहते हैं गालियाँ तिरी ना-चार चार पाँच
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
सदा आँसू बहाने से किसी को कुछ नहीं मिलता
कि रोने गिड़गिड़ाने से किसी को कुछ नहीं मिलता
इफ़्तिख़ार राग़िब
ग़ज़ल
छेड़ते हैं गुदगुदाते हैं फिर अरमाँ आज-कल
झूटे सच्चे कोई कर ले 'अहद-ओ-पैमाँ आज-कल
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
किस लिए ख़ार है खोई हुई ग़ैरत को जगा
गिड़गिड़ाने से नहीं मिलती है 'इज़्ज़त कोई
ज़किया शैख़ मीना
ग़ज़ल
गिड़गिड़ा कर मैं ने रब से माँगी है बस ये दु'आ
हाथ भी माँगा तुम्हारा और तुम्हारा साथ भी
अहमद अरसलान
ग़ज़ल
तू जिस इंसाफ़ की देवी के आगे गिड़गिड़ाता है
वो तुझ को न्याय क्या देगी न आँखों की न कानों की
कृष्ण कुमार नाज़
ग़ज़ल
किस लिए ख़्वार है खोई हुई ग़ैरत को जगा
गिड़गिड़ाने से नहीं मिलती है इज़्ज़त कोई