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ग़ज़ल
मैं राजा गिध हूँ न दश्त-ज़ादा न मास-ख़ोरा
मैं फिर भी बस्ती के मुर्दा-ख़ोरों में रह चुका हूँ
इमरान राहिब
ग़ज़ल
कश्मीर सी जागह में ना-शुक्र न रह ज़ाहिद
जन्नत में तू ऐ गीदी मारे है ये क्यूँ लातें
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
ख़ुदा अलीगढ़ के मदरसे को तमाम अमराज़ से शिफ़ा दे
भरे हुए हैं रईस-ज़ादे अमीर-ज़ादे शरीफ़-ज़ादे
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अजीब लोग हैं काग़ज़ की कश्तियाँ गढ़ के
समुंदरों की बला-ख़ेज़ियों पे हँसते हैं
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
मुँह से बात निकलते ही सौ गढ़ लेंगे अफ़्साने लोग
बैठे-बैठे बुन लेते हैं कैसे ताने-बाने लोग
रईस रामपुरी
ग़ज़ल
अगर आहों से अपनी कोई मिस्रा गढ़ भी लेते हैं
तो अश्कों से गिरह उस पर लगाते हैं ग़ज़ल वाले