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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न उट्ठा फिर कोई 'रूमी' अजम के लाला-ज़ारों से
वही आब-ओ-गिल-ए-ईराँ वही तबरेज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हाँ किस के पा-ए-दिल में है ज़ंजीर-ए-आब-ओ-गिल
कह दो कि दाम-ए-ज़ुल्फ़ में आए हुए हैं हम
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
हज़ारों दाग़ पिन्हाँ आशिक़ों के दिल में रहते हैं
शरर पत्थर की सूरत उन की आब-ओ-गिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
दरिया में गिर पड़ा जो मिरा अश्क एक गर्म
बुत-ख़ाने लब पे हो गए साहिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
वो गुल जिस गुल्सिताँ में जल्वा-फ़रमाई करे 'ग़ालिब'
चटकना ग़ुंचा-ए-गुल का सदा-ए-ख़ंदा-ए-दिल है