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ग़ज़ल
मिरे आँगन में इक नन्ही गिलहरी का बसेरा है
बहुत मासूम सा इक नक़्श मेरी क्यारियों पर है
हुमैरा रहमान
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
बेनाम सताइश रहती थी इन गहरी साँवली आँखों में
ऐसा तो कभी सोचा भी न था दिल अब जितना बेदाद हुआ