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ग़ज़ल
गिले शिकवे कहाँ तक होंगे आधी रात तो गुज़री
परेशाँ तुम भी होते हो परेशाँ हम भी होते हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
हिज्र के मौसम में यादें वस्ल की रातों में हैं
कुछ गिले-शिकवे यक़ीनन सब मुनाजातों में हैं
असअ'द बदायुनी
ग़ज़ल
हमें तो अब भी नहीं उस से कुछ गिले शिकवे
वो क्यों रुवाँसा हमारी नज़र में रहता है