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ग़ज़ल
मैं ही दस्तक देने वाला मैं ही दस्तक सुनने वाला
अपने घर की बर्बादी पर मैं ही सर को धुनने वाला
ज़फर इमाम
ग़ज़ल
इतनी बार मोहब्बत करना कितना मुश्किल हो जाता है
इंसानों पे हिजरत करना कितना मुश्किल हो जाता है
अली इमरान
ग़ज़ल
ख़ुश-ज़ौक़ी को अपने कुछ भी ना-क़दरी मंज़ूर नहीं
मुरझा कर जो फूल गिरे हैं दामन में वो फूल चुने
साबिर आरवी
ग़ज़ल
विसाल-घड़ियों में रेज़ा रेज़ा बिखर रहे हैं
ये कैसी रुत है ये किन अज़ाबों के सिलसिले हैं