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ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
तमाम फ़सलें उजड़ चुकी हैं न हल बचा है न बैल बाक़ी
किसान गिरवी रखा हुआ है लगान पानी में बह रहा है
शकील आज़मी
ग़ज़ल
ख़्वाब गिरवी रख दिए आँखों का सौदा कर दिया
क़र्ज़-ए-दिल क्या क़र्ज़-ए-जाँ भी आज चुकता कर दिया
फ़ातिमा हसन
ग़ज़ल
मेरे जैसे इस बस्ती में और भी पागल रहते हैं
सब ने आँखें गिरवी रख कर आधे ख़्वाब ख़रीदे हैं
दानिश अज़ीज़
ग़ज़ल
ये कौन लोग हैं जो रख दिए बदन गिरवी
ये कौन लोग हैं लगते हैं अपने साए मुझे