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ग़ज़ल
आँखों ने बे-क़रारी-ए-तिफ़्ल-ए-सरिश्क से
पैदा किया है मादन-ए-सीमाब का ख़वास
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
दिल है क्यों गिर्या-ए-बे-अश्क से पुर-नूर बहुत
तुम बहुत पास हो या ख़ुद से हैं हम दूर बहुत
ख़्वाजा शौक़
ग़ज़ल
तब से आशिक़ हैं हम ऐ तिफ़्ल-ए-परी-वश तेरे
जब से मकतब में तू कहता था अलिफ़ बे ते से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
सदक़े उस पर्वरदिगार-ए-पाक के जिस ने किया
बहर-ए-तिफ़्ल-ए-ग़ुंचा पैदा शीर-ए-बे-पिस्तान-ए-सुब्ह
पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
ग़ज़ल
गिर्या-ए-बे-इख़्तियार-ए-गम भी था फ़ितरी इलाज
जिस ने थोड़े जोश को हर मर्तबा कम कर दिया
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
पर्दा-दार-ए-गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी फ़क़्र है
बर्क़ है अब्र-ए-सियह में और मैं कम्मल में हूँ
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
मेरी आहें हैं दलील-ए-गिरिया-ए-बे-इंतिहा
जितनी आँधी आए बारिश हो सिवा बरसात में
सय्यद अाग़ा अली महर
ग़ज़ल
हँसते हैं उस के गिर्या-ए-बे-इख़्तियार पर
भूले हैं बात कह के कोई राज़दाँ से हम
अल्ताफ़ हुसैन हाली
ग़ज़ल
न करता ज़ब्त अगर मैं गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी कूँ
गुज़रता जिस तरफ़ ये पूर वीराने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
नसीम देहलवी
ग़ज़ल
निकला है दिल जला के मुझ आँखों से तिफ़्ल-ए-अश्क
उस शोख़-ए-बे-जिगर का देखो क्या हिया हुआ