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ग़ज़ल
ग़िज़ा-ए-रूह है ऐ हुस्न तू अपनी मलाहत से
हर इक के ज़ाइक़े में ठीक है आब-ओ-नमक तेरा
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हम राह-रव-ए-मंज़िल दुश्वार रहे हैं
हर तरह मुसीबत में गिरफ़्तार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज
पैदा किया है हम को ख़ुदा ने बरा-ए-रंज
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
झुक गया दिल रूह ने सज्दा किया बे-इख़्तियार
जल्वा-गाह-ए-दिल-नवाज़-ओ-रूह-परवर है यही
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
तुझ बिन रह-ए-हयात में लुत्फ़-ए-सफ़र कहाँ
तस्कीन-ए-क़ल्ब-ओ-रूह सुकून-ए-जिगर कहाँ