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ग़ज़ल
दिल तोड़ कर वो नश्शे में कहते हैं नाज़ से
किस काम का रहा है ये टूटा गिलास है
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
शाम के रंगों में रख कर साफ़ पानी का गिलास
आब-ए-सादा को हरीफ़-ए-रंग-ए-बादा कर लिया
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
उगा है घर में हर सू सब्ज़ा वीरानी तमाशा कर
मदार अब खोदने पर घास के है मेरे दरबाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
देखो तो पेट बन गया आख़िर ग़ुबारा गैस का
खाते हो इतना गोश्त क्यों पीते हो इतनी चाय क्यों