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ग़ज़ल
गिला तिरे फ़िराक़ का जो आज-कल नहीं रहा
तो क्यूँ भला ये मुस्तक़िल अज़ाब टल नहीं रहा
आरिफ़ इशतियाक़
ग़ज़ल
और तो कुछ नहीं मेरे दिल की है इक आरज़ू गुफ़्तुगू
चाहता है किसी रोज़ हो आप से रू-ब-रू गुफ़्तुगू