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ग़ज़ल
गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में
विलास पंडित मुसाफ़िर
ग़ज़ल
मजबूरी के चावल भूने लाचारी दो मुट्ठी डाली
हम ने खाया ग़म को अपने फिर गुड़-धानी करते करते
हेमा काण्डपाल हिया
ग़ज़ल
थी उस की नड़ी मुँह में लगातार सहर तक
सुनता रहा हुक़्क़े की मैं गुड़ गुड़ मुतवातिर