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ग़ज़ल
फ़स्ल तुम्हारी अच्छी होगी जाओ हमारे कहने से
अपने गाँव की हर गोरी को नई चुनरिया ला देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
गोरी इस संसार में मुझ को ऐसा तेरा रूप लगे
जैसे कोई दीप जला हो घोर अँधेरे जंगल में
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
बला का फ़र्क़ है लंदन की गोरी और काली में
मगर दोनों की आँखों में इशारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
साँवला रंग है ख़ुद उस की बहन का लेकिन
मेरा बेटा है कि वो गोरी दुल्हन चाहता है
राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
साजन की यादें भी 'ख़ावर' किन लम्हों आ जाती हैं
गोरी आटा गूँध रही थी नमक मिलाना भूल गई