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ग़ज़ल
फूल हैरत से हमें देखा किए वक़्त-ए-विसाल
गुल-बदन के साथ 'आज़र' गुलसिताँ की सैर की
दिलावर अली आज़र
ग़ज़ल
पहना हो बर में जामा मिरा गुल-एज़ार सुर्ख़
आई है क्या मज़े से चमन में बहार सुर्ख़
फ़त्तावत औरंगाबादी
ग़ज़ल
समाया जब से है वो गुल-एज़ार आँखों में
हर एक गुल नज़र आता है ख़ार आँखों में
मुंशी शिव परशाद वहबी
ग़ज़ल
हम ढूँडते हैं बाग़ में इस गुल-एज़ार को
जल्वा ने जिस के रंग दिया है बहार को
मुंशी बिहारी लाल मुश्ताक़ देहलवी
ग़ज़ल
फिर आया जाम-ब-कफ़ गुल-एज़ार ऐ वाइज़
शिकस्त-ए-तौबा की फिर है बहार ऐ वाइज़
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
गुल-एज़ार और भी यूँ रखते हैं रंग और नमक
पर मिरे यार के चेहरे का सा ढंग और नमक
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
महव हूँ याद-ए-चेहरा-ए-शाहिद-ए-गुल-अज़ार में
अब ये ख़िज़ाँ-नसीब दिल जा के मिला बहार में
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
ये क्या कि ज़ख़्म-ए-जिगर चश्म-ए-इन्तिज़ार मिले
मिले तो सोहबत-ए-हुरान-ए-गुल-एज़ार मिले
अंजुम आज़मी
ग़ज़ल
इस सर्व-ए-गुल-अज़ार की तर्ज़-ए-ख़िराम देख
ख़जलत से गड़ ज़मीन में शमशाद रह गया