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ग़ज़ल
बनाया है जिन्हें मैं ने मोहब्बत के गुलाबों से
तर-ओ-ताज़ा वो गुल-दस्ते तुम्हारे नाम करती हूँ
समीना गुल
ग़ज़ल
हम तुम जब भी प्यार करेंगे जान-ओ-दिल सदक़े होंगे
रूहों की ख़ुश्बू में होंगी बाहोँ के गजरे होंगे
एजाज़ गुल
ग़ज़ल
कोई आज़ुर्दा करता है सजन अपने को हे ज़ालिम
कि दौलत-ख़्वाह अपना 'मज़हर' अपना 'जान-ए-जाँ' अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
बर्ग-ए-हिना ऊपर लिखो अहवाल-ए-दिल मिरा
शायद कि जा लगे वो किसी मीरज़ा के हाथ
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
लाला-ए-गुल ने हमारी ख़ाक पर डाला है शोर
क्या क़यामत है मुओं को भी सताती है बहार