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ग़ज़ल
न तर्ज़-ए-ख़ास न अंदाज़-ए-गुल-फ़िशाँ ले कर
पुकारता हूँ मैं तुझ को तिरी ज़बाँ ले कर
क़ैसर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
जब ज़रा नग़्मों से बुलबुल गुल-फ़िशाँ हो जाएगा
टोकरी फूलों की सारा आशियाँ हो जाएगा
क़द्र बिलग्रामी
ग़ज़ल
हर ज़र्रा गुल-फ़िशाँ है नज़र चूर चूर है
निकले हैं मय-कदे से तो चेहरे पे नूर है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
जो तबस्सुमों से हो गुल-फ़शाँ वही लब हँसी को तरस गए
हमीं शहरयार-ए-हयात थे हमीं ज़िंदगी को तरस गए
पयाम फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
सोज़-ए-ग़म को बा’इस-ए-तस्कीन-ए-जाँ कैसे कहें
मौज-ए-सरसर को नसीम-ए-गुल-फ़िशाँ कैसे कहें
बिर्ज लाल रअना
ग़ज़ल
तज्रबे दर्द की शबनम में नहाएँ 'हुर्मत'
गुल-फ़िशाँ शो'ला-ए-जाँ हो तो ग़ज़ल होती है
हुरमतुल इकराम
ग़ज़ल
खटकता है कभी गुल ख़ार की मानिंद आँखों में
कभी ख़ार-ए-बयाबाँ गुल-फ़िशाँ मालूम होता है
सरशार होश्यारपुरी
ग़ज़ल
शिकस्ता साज़ छेड़ें अपनी आँखें गुल-फ़िशाँ कर लें
वो आएँ या न आएँ हम तो बज़्म-आराईयाँ कर लें
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
हुआ है दीदा-ए-'बेदार' गुल-फ़िशाँ जब से
गिरा है तब से ये अब्र-ए-बहार आँखों से