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ग़ज़ल
मिरी रंगीं-कलामी का है वो गुल पैरहन बाइ'स
कि होवे बुलबुलों की ख़ुश-सफ़ीरी का चमन बाइ'स
मीर मोहम्मद बाक़र हज़ीं
ग़ज़ल
जुनून-ए-दिल न सिर्फ़ इतना कि इक गुल पैरहन तक है
क़द ओ गेसू से अपना सिलसिला दार-ओ-रसन तक है
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव
फूल जाते हैं जवानान-ए-चमन के हाथ पाँव
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
गुल-बदन गुल-पैरहन रूह-ए-चमन तुम ही तो हो
जान-ए-मन ग़ुंचा-दहन शीरीं-सुख़न तुम ही तो हो
मोहम्मद शफ़ी सीतापूरी
ग़ज़ल
क्या है ये कैफ़ियत-ए-मौसम-ए-गुल-पैराहन
न कहीं बाद-ए-बहारी न कहीं बू-ए-सुख़न