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ग़ज़ल
हाज़िर हैं कलीसा में कबाब ओ मय-ए-गुलगूँ
मस्जिद में धरा क्या है ब-जुज़ मौइज़ा ओ पंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नामवरी की बात दिगर है वर्ना यारो सोचो तो
गुलगूँ अब तक कितने तेशे बे-ख़ून-ए-फ़रहाद हुए
जौन एलिया
ग़ज़ल
बहार-ए-आरिज़-ए-गुल्गूँ तुझे ख़ुदा की क़सम
वो सुब्ह मेरे लिए भी कि जिस की शाम न हो
जमील मुरस्सापुरी
ग़ज़ल
किस की आँखों में ये ग़लताँ है जवानी की शराब
खोल दी आह ये किस ने मय-ए-गुल-गूँ की सबील
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
बादा-ए-गुल-गूँ के शीशे का हूँ साइल साक़िया
साथ कैफ़िय्यत के उड़ता मुझ को घोड़ा चाहिए
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
बढ़ गया बादा-ए-गुल-गूँ का मज़ा आख़िर-ए-शब
और भी सुर्ख़ है रुख़्सार-ए-हया आख़िर-ए-शब
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
गुल-रुख़ ओ गुल-गूं क़बा ओ गुल-अज़ार ओ गुल-बदन
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
क्यूँके बे-बादा लब-ए-जू पे चमन में रहिए
अक्स-ए-गुल आब में तकलीफ़-ए-मय-ए-गुल-गूँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
निकहत-ए-गुल से 'सबा' हम मस्त रहते हैं मुदाम
बादा-ए-गुल-गूँ नहीं दरकार क़ैसर-बाग़ में
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
सनम की ज़ुल्फ़ के हल्क़े में है ज्यूँ जीम का नुक़्ता
अजब है ख़ुश-नुमा उस आरिज़-ए-गुलगूँ पे ख़ाल उस का