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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
देखने वाले ये कहते हैं किताब-ए-दहर में
तू सरापा हुस्न का नक़्शा है मैं तस्वीर-ए-इश्क़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
घूरेंगे क्या गुलों को गुलिस्तान-ए-दहर में
रुख़्सत हुई बहार नुज़ूल-ए-ख़िज़ाँ हुआ
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
गुलशन-ए-दहर की फ़ज़ा अब नहीं सोगवार क्या
दौर-ए-ख़िज़ाँ से हो गई ओहदा-बरा बहार क्या
इफ़्तिख़ार अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
खिला न ग़ुंचा-ए-दिल बाग़-ए-दहर में 'अफ़्क़र'
ख़िज़ाँ-नसीब रहा अपना गुलिस्तान-ए-हयात
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
न पूछ राज़-ए-दरून-ए-निगार-ख़ाना-ए-दहर
किसे ख़बर है कि मैं क्या हूँ और तू क्या है