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ग़ज़ल
बहार आए तो ख़ुद ही लाला ओ नर्गिस बता देंगे
ख़िज़ाँ के दौर में दिलकश गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सिकंदर अली वज्द
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल होती थी क्या जश्न-ए-जुनूँ होता था
आज कुछ भी नहीं होता है गुलिस्तानों में
मख़दूम मुहिउद्दीन
ग़ज़ल
ख़िरद वालो जुनूँ वालों के वीरानों में आ जाओ
दिलों के बाग़ ज़ख़्मों के गुलिस्तानों में आ जाओ
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
ग़ुरूब-ए-मेहर का मातम है गुलिस्तानों में
नसीम-ए-सुब्ह भी शामिल है नौहा-ख़्वानों में
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
क़फ़स से हुस्न-ए-गुल के क़द्र-दाँ अब तक नहीं पलटे
शगूफ़ों के तबस्सुम से गुलिस्तानों के दिल टूटे
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
मोहब्बत के गुलिस्तानों में फलने-फूलने वालो
इसी रस्ते में आगे चल के वीराने भी आते हैं
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
थी गुल-पोशी चमन वालो कि गुल-चीनी का पागल-पन
तुम्हारी इन अदाओं से गुलिस्तानों पे क्या गुज़री
सफ़ीया राग अलवी
ग़ज़ल
सफ़र क़दमों से वाबस्ता है लेकिन रास्ता अपना
गुलिस्तानों से वाबस्ता न वीरानों से वाबस्ता
राही कुरैशी
ग़ज़ल
नया इक मा'बद-ए-उम्मीद भी ता'मीर करना है
अनादिल मोतकिफ़ कब तक रहेंगी गुलिस्तानों में
याक़ूब उस्मानी
ग़ज़ल
रूह मेरी भी नहीं छोड़ेगी रंग-ए-सैर-ए-बाग़
जूँ भरी रहती है बू-ए-गुल गुलिस्तानों के बीच
वली उज़लत
ग़ज़ल
ख़ार-ओ-ख़स की ही हुकूमत है गुलिस्तानों में
अपनी रहमत से हरा मेरा ये गुलशन कर दे