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ग़ज़ल
रोज़-ए-अव्वल से असीर ऐ दिल-ए-नाशाद हैं हम
परवरिश-याफ़्ता-ए-ख़ाना-ए-सय्याद हैं हम
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
मैं वस्ल में भी 'शेफ़्ता' हसरत-तलब रहा
गुस्ताख़ियों में भी मुझे पास-ए-अदब रहा
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
जो कू-ए-दोस्त को जाऊँ तो पासबाँ के लिए
नहीं है ख़्वाब से बेहतर कुछ अरमुग़ाँ के लिए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो
या हम न हों जहाँ में ख़ुदा या जहाँ न हो
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
ग़ज़ल
ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ
वीराना-ए-तन छोड़ गुलिस्ताँ कूँ पहुँच तूँ
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
बुलबुल के सर में क्यों न भरे फिर हवा-ए-गुल
गुल बुलबुलों पे शेफ़्ता बुलबुल फ़िदा-ए-गुल
ख़ंजर अजमेरी
ग़ज़ल
अगर ग़म की हुई यूँ कार-फ़रमाई तो क्या होगा
रही होते हुए भी उन के तन्हाई तो क्या होगा