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ग़ज़ल
निगाह-ए-बादा-गूँ यूँ तो तिरी बातों का क्या कहना
तिरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ले रहा है दर-ए-मय-ख़ाना पे सुन-गुन वाइ'ज़
रिंदो हुश्यार कि इक मुफ़सिदा-पर्दाज़ आया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हर गोशा-ए-मग़रिब में हर ख़ित्ता-ए-मशरिक़ में
तशरीह दिगर-गूँ है अब तेरे पयामों की
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
ख़याल-ए-यार ने तो आते ही गुम कर दिया मुझ को
यही है इब्तिदा तो इंतिहा उस की कहाँ तक है
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ तिरे शाने पे खुली नागिन है
डस ले ये जिस को न फिर उठ के वो पानी माँगे
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
कोई नालाँ कोई गिर्यां कोई बिस्मिल हो गया
उस के उठते ही दिगर-गूँ रंग-ए-महफ़िल हो गया