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ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं ने ऐसे ही गुनह तेरी जुदाई में किए
जैसे तूफ़ाँ में कोई छोड़ दे घर शाम के बा'द
फ़रहत अब्बास शाह
ग़ज़ल
हम यहाँ हैं बे-गुनाह सो हम में से 'जौन-एलिया'
कोई जीत आया यहाँ और कोई हार आया तो क्या
जौन एलिया
ग़ज़ल
तेग़ मुंसिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद
बे-गुनह कौन है उस शहर में क़ातिल के सिवा