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ग़ज़ल
आश्ना की सदा घुप-अँधेरे में बन जाती है रौशनी
इस शब-ए-तार में अपनी आवाज़ का रखना रौशन दिया
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
ग़ज़ल
ढूँडना है घुप-अँधेरे में मुझे इक शख़्स को
पूछना सूरज ज़रा मुझ में उतर जाएगा क्या