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ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
गुफ़्त-ओ-गू में ये नज़ाकत है कि अल्लाह अल्लाह
एक इक हर्फ़ भी मुश्किल से अदा होता है
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरे गू-मगू के आलम ने
कहा भी उन से जो कहना था बात की भी नहीं
फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली
ग़ज़ल
नुत्क़ क़ासिर है बयाँ से वो मज़ा पाते हैं लोग
मुझ से पूछो इश्क़ में गुम हो के क्या पाते हैं लोग
माहिर बिलग्रामी
ग़ज़ल
'इश्क़ की तर्ज़-ए-तकल्लुम वही चुप है कि जो थी
लब-ए-ख़ुश-गू-ए-हवस महव-ए-बयाँ है कि जो था
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
गू-मगू के दिन थे वो मस्जिद कोई चलती न थी
ख़ौफ़ की देवी का डर मंदिर कोई खुलता न था