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ग़ज़ल
गुफ़्तुगू तू ने सिखाई है कि मैं गूँगा था
अब मैं बोलूँगा तो बातों में असर भी देना
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
बेताब हवा के झोंकों की फ़रियाद सुने तो कौन सुने
मौजों पे तड़पती कश्ती है और गूँगा बहरा पानी है
सलीम अहमद
ग़ज़ल
राह-ए-उल्फ़त में समझ लो दिल को गूँगा रहनुमा
साथ है और दे नहीं सकता है मंज़िल का पता
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मेरा भी हर अंग था बहरा उस का जिस्म भी गूँगा था
वर्ना आपस में कहने-सुनने को जाने क्या क्या था