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ग़ज़ल
गूँगे लफ़्ज़ों का ये बे-सम्त सफ़र मेरा है
गुफ़्तुगू उस की है लहजे में असर मेरा है
मेराज फ़ैज़ाबादी
ग़ज़ल
लफ़्ज़ गूँगे हैं इन्हें गोयाई देने के लिए
ज़िंदगी के सच्चे लम्हों में ग़ज़ल कहता हूँ मैं
अतहर नफ़ीस
ग़ज़ल
जाने कब टूटेगा ये लफ़्ज़ ओ म'आनी का तिलिस्म
जाने कब वो गूँगे लफ़्ज़ों को सदा दे जाएगा
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ों का इश्क़ क्यूँकर उन से बयाँ करूँगा
हाल-ए-दिल-ए-परेशाँ गूँगे का ख़्वाब होगा
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
यार तुम को दिल नहीं देने का बे-बोसा लिए
तुम जो अपनी गूँगे हो मैं भी हूँ अपनी घात का