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ग़ज़ल
हमारी सैर को गुलशन से कू-ए-यार बेहतर था
नफ़ीर-ए-बुलबुलों से नाला-हा-ए-ज़ार बेहतर था
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
पानी पानी हो गया जोश अब्र-ए-दरिया-बार का
देख कर तूफ़ाँ हमारे दीदा-हा-ए-ज़ार का
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
अलम-नशरह हुआ सिर्र-ए-ख़फ़ी हिज़्यान-ए-मस्ती में
असर था 'ज़ार' ये शुर्ब-ए-शराब-ए-हाल-ए-विज्दाँ का
पंडित त्रिभुवननाथ ज़ुतशी ज़ार देहलवी
ग़ज़ल
इसी मिट्टी का ग़म्ज़ा हैं मआरिफ़ सब हक़ाएक़ सब
जो तुम चाहो तो इस जुमले को लौह-ए-ज़र पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
कैसे करूँ मैं ज़ब्त-ए-राज़ तू ही मुझे बता कि यूँ
ऐ दिल-ए-ज़ार शरह-ए-राज़ मुझ से भी तू छुपा कि यूँ
एस ए मेहदी
ग़ज़ल
बार-हा जी में ये आई उम्र-ए-रफ़्ता से कहूँ
शाम होने को है ऐ भूले मुसाफ़िर घर तो आ
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
मिरी हमसरी का ख़याल क्या मिरी हम-रही का सवाल क्या
रह-ए-इश्क़ का कोई राह-रौ मिरी गर्द को भी न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
हज़ार शर्म करो वस्ल में हज़ार लिहाज़
न निभने देगा दिल-ए-ज़ार ओ बे-क़रार लिहाज़