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ग़ज़ल
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सुनाऊँ तुम को वो लफ़्ज़ों में हाल-ए-ख़ूबी-ए-क़िस्मत
मिरे दामन पे बरसे भी तो अश्कों के गुहर बरसे
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
अगर ज़बाँ से बयाँ हाल-ए-ग़म न हो पाया
हुज़ूर-ए-दोस्त मिरी ख़ामुशी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
मिरा माज़ी नज़र आया मुझे हाल-ए-हसीं हो कर
जो उन के साथ देखे थे वो मंज़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
कहीं सुब्ह-ओ-शाम के दरमियाँ कहीं माह-ओ-साल के दरमियाँ
ये मिरे वजूद की सल्तनत है अजब ज़वाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
बस इसी बात पे वो शख़्स ख़फ़ा है मुझ से
शहर में तज़्किरा-ए-रस्म-ए-वफ़ा है मुझ से
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं