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ग़ज़ल
किसी चश्म-ए-सियह का जब हुआ साबित मैं दीवाना
तो मुझ से सुस्त हाथी की तरह जंगली हिरन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तिरे ही ख़्वान-ए-ने'मत से है सब की परवरिश वर्ना
कोई च्यूँटी से हाथी तक खिला सकता है क्या क़ुदरत
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
च्यूँटी से सीख लेंगे हुनर उस के बा'द क्या
जाता रहेगा हाथी का डर उस के बा'द क्या
शिव ओम मिश्रा अनवर
ग़ज़ल
जावेदाँ है ख़ामोशी बे-कराँ है ख़ामोशी
लफ़्ज़ गर सितारे हैं आसमाँ है ख़ामोशी
प्रेयस हाथी "राक़िम"
ग़ज़ल
ये ताक़त और ये शोहरत समय का फेर है प्यारे
गली अपनी हो तो हाथी को कुत्ते घेर लेते हैं
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
मुँह में ज़ाहिद के भी हैं दो दाँत हाथी की तरह
इक दिखाने के लिए है एक खाने के लिए
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
उफ़क़ को तकती हैं मुद्दत से बे-शुमार आँखें
सहर का ख़्वाब लिए सब उमीद-वार आँखें
प्रेयस हाथी "राक़िम"
ग़ज़ल
राजाओं का देस था घर घर हाथी झूमा करते थे
आज वही भारत 'रहमानी' मुल्क है भूखों नंगों का
परवेज़ रहमानी
ग़ज़ल
कोस बैठें फ़ुक़रा अहल-ए-दुवल को तो अभी
उन के हाथी हों पहाड़ और ये घोड़े पत्थर