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ग़ज़ल
एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
महबस में कुछ हब्स है और ज़ंजीर का आहन चुभता है
फिर सोचो हाँ फिर सोचो हाँ फिर सोचो ख़ामोश रहो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बढ़े जो हब्स तो शाख़ें हिला देना कि अब हम को
हवा के साथ जीना है हवा के साथ मरना है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता
चली आती है वो मौज-ए-सबा आहिस्ता आहिस्ता