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ग़ज़ल
हर-बुन-ए-मू से दम-ए-ज़िक्र न टपके ख़ूँ नाब
हमज़ा का क़िस्सा हुआ इश्क़ का चर्चा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
क्या ख़लीफ़ा जी ये है है है नहीं से निकले
आगे छुट्टी दो ऐ लो लाम अलिफ़ हमज़ा ये
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
शब इस दिल-ए-गिरफ़्ता को वा कर ब-ज़ोर-ए-मय
बैठे थे शीरा-ख़ाने में हम कितने हर्ज़ा-कोश
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
उठता है मेरे दिल में मुसलसल जो कुछ नहीं
'हमज़ा' वो बस सवाल है तुम क्यों चले गए